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अनुभूति में विनीता शुक्ला की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
उसको तो जाना ही था
जिजीविषा
जीवन का गणित
मुट्ठी भर रेत

 

मुट्ठी भर रेत

ये जीवन मानो -
मुट्ठी भर रेत

झरती हैं खुशियाँ झरते हैं सपने
इक पल हँसना तो दूजे पल क्लेश
ये जीवन मानो -मुट्ठी भर रेत

रेतघड़ी समय की चलती ही रहती
लम्हों की पूँजी हाथ से फिसलती
बस स्मृतियों के रह जाते अवशेष
ये जीवन मानों -
मुट्ठी भर रेत

किसी से हो मिलना किसी से बिछड़ना
जग के मेले में बंजारे सा फिरना
दुनिया आनी जानी- सत्य यह अशेष
ये जीवन मानों -
मुट्ठी भर रेत

१ मई २०२४

 

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