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एक मिनट का मौन

सकून ही नही यकीन भी तो है
तुम पर! हो भी क्यो न?
यही तो कमाई है विश्वास की।
पहले या बाद में मैं रख लूँगा या तुम
दो मिनट का नही एक मिनट काफी है।
हादसों के शहर में आज ही तो बाकी है
कल क्या होगा प्यारे? ना तो हम जानते ना तुम
आदमी के बदमिजाज से जान ही गये हो
भ्रष्टाचार, आतंकवाद, क्षेत्रवाद, धर्मवाद जातिवाद
खाद्यानों की मिलावट, दूषित वातावरण
और दूसरी साजिशें कब मौत के कारण बन जाएँ
दोस्त ना तुम जानते हो ना हम
एक बात जान गये है ये साजिशों के ज्वालामुखी
कभी भी जानलेवा साबित हो सकते हैं।
काश ये ज्वालामुखी शान्त हो जाते सदा के लिये
परन्तु विश्वास की परतें जम तो नहीं रही है।
हाँ सकून और यकीन तो है दोस्त
तुम मेरी और मैं तुम्हारी
मौत पर दो की जगह एक मिनट का
मौन तो रख ही लेगे कोई तूफान क्यों ना उठे
और फिर भले ही हम खो जाये ब्रहमाण्ड में
दुनिया की अमन शान्ति के लिये।

१४ जून २०१०

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