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अनुभूति में हरि ठाकुर की रचनाएँ-

गीतों में-
किरन मंत्र
जो सन्नाटे को तड़का दे
फूलों ने अधर न खोले
वृक्ष खोजते अभय शरण
स्वर्णिम संकल नहीं बनूँगा
सूरज का रथ

 

वृक्ष खोजते अभय शरण

सूरज उगल रहा है आग
और हवा मैं फैले नाग।।

हरियाली का चीर हरण
वृक्ष खोजते अभय शरण
तड़क रहे पर्वत के अंग
पनघट ने ले लिया विराग।।
सूरज...

जंगल सारा दहक रहा
दिन बुखार में बहक रहा
पथ सन्नाटा ओढ़ पड़ा
सुलग रहा सपनों का बाग।।
सूरज...

अंजुरि भर हैं नदियाँ शेष
धरती धरे अगिन का वेश
पाखंडी हर बादल आज
फूल अलापते दीपक राग।।

सूरज उगल रहा है आग
और हवा में फैले नाग।।

१० मार्च २००८

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