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                     अनुभूति में
                    दीपक 
                    राज कुकरेजा की रचनाएँ- 
                    नई कविताएँ- 
                    
                    तिजोरी भरी दिल है खाली 
                    
                    दिल के चिराग 
                    
                    शिखर के चरम पर 
                    
                    सपने तो जागते हुए भी 
                    कविताओं में- 
                    एक पल में 
                    कविता 
                  
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 शिखर के चरम पर 
मन ने कहा उस शिखर पर 
चढ़ जाओ 
जहाँ से तुम सबको दिख सको 
लोग की जुबान और तुम्हारा नाम चढ़ जाए 
चल पड़ा वह उस ऊँचाई पर 
जो किसी-किसी को मिल पाती है 
जो उसे पा जाए 
दुनिया उसी के गुण गाती है 
जो देखे तो देखता रह जाए 
मन को फिर भी चैन नहीं आया  
शिखर के चरम पर 
उसने अपने को अकेला पाया 
अब मन ने कहा 
'उस भीड़ में चलो 
यहाँ अकेलेपन का 
डर और चिंता के बादल छाए' 
वह घबड़ा गया 
बुद्धि ने छोड़ दिया साथ 
उसने सोचा 
'जब तक इस शिखर पर हूँ 
लोग कर रहे हैं जय-जयकार 
उतरते ही मच जाएगा हाहाकार 
जो जगह छोड़ दी अब वहाँ क्यों जाए' 
अब अहंकार भी अड़ा है सामने 
शिखर के चरम पर खड़ा है वह  
अपने ही मन से लड़ता जाए 
16 दिसंबर 2007 
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