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तुम चंदा-सी शीतलता दो   
जग को दें 
कुछ मिलकर हम तुम, जीवन साथी हाथ बढ़ा दो। 
मैं सूरज-सा नित प्रकाश दूँ, तुम चंदा-सी शीतलता दो। 
दुख को झेलें 
हँसकर कैसे, मैं दिखलाऊँ बनकर समीर। 
कष्टों में भी तुम बनी रहो, पृथ्वी के जैसी सहनशील। 
तुम पतित 
पावनी गंगा-सी मेरे पीछे चलती जाओ 
मैं भगीरथ-सा आगे बढ़कर, जग को बाटूँ अमृतमय नीर। 
मैं सागर-सा 
बनूँ विशाल औ' तुम नदियों की निर्मलता दो। 
मैं सूरज-सा नित प्रकाश दूँ, तुम चंदा-सी शीतलता दो। 
मैं बन पारस 
स्पर्श करूँ तो लोहा, बन जाए सोना। 
तुम मधुर स्मृति-सी हरदम, रूठे मन का कालिख धोना। 
मैं मलयज-सा 
सौगंध लिए, नित शीतल मंद सुगंध बहूँ। 
तुम बन सुरभि इस धरती का महकाओ प्रिय कोनाकोना। 
मैं सत्य-सा 
बनूँ कठोर औ' तुम मृदु मन की कोमलता दो। 
मैं सूरज-सा नित प्रकाश दूँ, तुम चंदा-सी शीतलता दो। 
श्रद्धा में 
तुम रहो लिप्त और तना रहूँ मैं स्वाभिमान में। 
तुम प्रेम की बनो प्रतीक, मैं बनूँ धरोहर इस जहान में। 
बनकर स्वाति 
की बूँद प्रिये, तुम प्यास बूझाओ जनजन की। 
मैं ध्रृव तारा-सा दीप्त सदा, शोभा पाऊँ इस आसमान में। 
मैं 
हिमगिरि-सा अचल अडिग, तुम ताजमहल की सुंदरता दो। 
मैं सूरज-सा नित प्रकाश दूँ, तुम चंदा-सी शीतलता दो। 
9 फरवरी 2006
 
            
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