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अनुभूति में डॉ आदित्य शुक्ल की कविताएँ—
जीवन यों ही बीत गया
तुम चंदा-सी शीतलता दो
सुख और दुख
यदि मिल जाएँ पंख उधार
लगता है कोई बोल रहा है
 

 

  जीवन यों ही बीत गया

तिनका-तिनका महल बनाते, जीवन यों ही बीत गया।
कुछ पाने को सब कुछ खोया, अपना घट अब रीत गया।

जग ने जितने दाँव बिछाए, सबको जीता बहुत सहज।
मन की बाजी दाँव लगी तब, मैं हारा जग जीत गया।

फल है तब तक सुंदर उपवन, पतझ किसको प्यारा है।
जब बसंत था सब अपने थे, मौसम बदला, मीत गया।

जब तक समझा मैंने उसको, हमराही थे हम दोनों।
जब चाहा वो मुझको समझे, उस दिन मन से मीत गया।

शब्द नहीं थे, राग नहीं था, भाग भरे थे जब मन में।
अब सब कुछ है जीवन में बस गीत गया, संगीत गया।

16 जनवरी 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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