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                   अनुभूति में 
                  
                  सुरेन्द्र सिंघल की रचनाएँ- 
                  अंजुमन में- 
                  इन दबी सिसकियों 
                  कहीं कुछ तो बदलना चाहिए 
                  रूखी सूखी-सी रोटियाँ 
                  वो केवल हुक्म देता है  | 
                ' | 
                
                  वो केवल हुक्म 
                  देता है वो केवल हुक़्म 
                  देता है, सिपहसालार जो ठहरा 
                  मैं उसकी जंग लड़ता हूँ, मैं बस हथियार जो ठहरा 
                  दिखावे की ये हमदर्दी, तसल्ली, 
                  खोखले वादे 
                  मुझे सब झेलने पड़ते हैं, मैं बेकार जो ठहरा 
                  तू भागमभाग में इस दौर की शामिल 
                  हुई ही क्यों 
                  मैं कैसे साथ दूँ तेरा, मैं कम-रफ़्तार जो ठहरा 
                  मुहब्बत, दोस्ती, चाहत, वफ़ा, 
                  दिल और कविता से 
                  मेरे इस दौर को परहेज़ है, बीमार जो ठहरा 
                  घुटन लगती न यूँ, कमरे में इक 
                  दो खिड़कियाँ होतीं 
                  मैं केवल सोच सकता हूँ, किरायेदार जो ठहरा 
                  उसे हर शख़्स को अपना बनाना 
                  ख़ूब आता है 
                  मगर वो ख़ुद किसी का भी नहीं, हुशियार जो ठहरा 
                  १६ नवंबर २००९'  |