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                  कहीं कुछ तो बदलना 
                  चाहिए कहीं कुछ तो बदलना 
                  चाहिए अब 
                  कि जैसी है न दुनिया चाहिए अब 
                  मैं कब तक बैठ पाऊँगा लिहाज़न 
                  मुझे महफ़िल से उठना चाहिए अब 
                  ये बदबू मारते तालाब ठहरे 
                  मुझे दरिया में बहना चाहिए अब 
                  फिर उसके बाद हंगामा तो होगा 
                  पर अपनी बात कहना चाहिए अब 
                  लकीरें हाथ की कब तक कहेंगी 
                  मेरे हाथों को कहना चाहिए अब 
                  ख़ुदा को रख लिया ज़िंदा बहुत 
                  दिन 
                  उसे हर हाल मरना चाहिए अब 
                  मैं अपने आप से भागा फिरूँ हूँ 
                  मुझे ख़ुद से भी लड़ना चाहिए अब 
                  १६ नवंबर २००९  |