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                  रूखी सूखी सी 
                  रोटियाँ रूखी-सूखी-सी 
                  रोटियाँ भी छीन 
                  तन पे बाकी हैं धज्जियाँ भी छीन 
                  अंत में राक्षस ही मरता है 
                  मुझसे ऐसी कहानियाँ भी छीन 
                  मेरा घऱ-खेत छीनने वाले 
                  मुझसे चंबल की घाटियाँ भी छीन 
                  गंध माटी की मुझमें बाकी है 
                  इस ख़ज़ाने की कुंजियाँ भी छीन 
                  वरना ख़तरा ही रहेगा तुझको 
                  मुझसे ग़ज़लों की बर्छियाँ भी छीन 
                  १६ नवंबर २००९  |