| तुमने छुआ था 
                  तुमने छुआ था मेरा जब हाथ 
                  चुपके-चुपके कितने मचल उठे थे जज्बात चुपके-चुपके।
 बिखरे हुए हैं ख़्वाबों के फूल 
                  सहने दिल मेंआया था दिल के घर में कोई रात चुपके-चुपके।
 बस्ती में ख़्वाहिशों की हलचल 
                  मचा गए हैंवो इक झलक की देके सौग़ात चुपके-चुपके।
 क्या जाने खौफ़ क्या है उनके 
                  जहन में यारो?करते हैं आजकल वो हर बात चुपके-चुपके।
 वो भी नहीं बताते अब दर्द अपने 
                  दिल काऔर हम भी सह रहें हैं सदमात चुपके-चुपके।
 आँखों का पानी देखा, देखी नहीं 
                  है तुमनेअन्दर जो हो रही है बरसात चुपके-चुपके।
 यूँ कहने को तो मुझसे ही मिलने 
                  आए हैं वोपर देखते हैं मेरी औक़ात चुपके-चुपके।।
 ९ अप्रैल २००५ 
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