| लग रहा है लग रहा है ज़िन्दगी रूठी हुई हैआजकल उनकी नज़र बदली हुई है।
 फूल अब उनके सहन के दीखना बन्दलगता है दीवार कुछ ऊँची हुई है।
 मलगजे कपड़ों में उनको देखकर 
                  रातचाँद खुश है, चाँद की चाँदी हुई है।
 रात अंधेरे की हुई बारिश 
                  ज़ियादहधूप की चादर भी कुछ गीली हुई है।
 ख़्वाहिशों पे अब भी बच्चे-सा 
                  मचलनाकैसे कह दूँ ज़िन्दगी सँभली हुई है?
 आप देते जाएँ बदनामी के छींटेहमने चादर ज़ब्त की ओढी हुई है।
 फिर कोई सौदा किया है बागबाँ नेफूल हैं चुप हर कली सहमी हुई है।
 ज़िन्दगी के बाग में बच्चे-सा 
                  दौडूँकैसे पकडूँ? हर खुशी तितली हुई है।
 ऐ 'ऋषी' जज़्बात अपने, दोस्त 
                  अपनेफ़स्ले-गम़ इस बार भी अच्छी हुई है।
 १६ दिसंबर २००४ |