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नई रचनाएँ—
किसी इंसान को
किसी की शायरी
मोहब्बत की कसक जिसमें नहीं

अंजुमन में—
अगर बढ़ेगी दिल की दूरी
आँखों से जाने उसने क्या
आदमी की भीड़ मे
आदमी को और भला

आपसे कुछ कहें
उदासी के समंदर को
उसके सीने मे
कभी जो बंद कीं आँखें
कभी बादल कभी बिजली
करिश्मा
किसी कविता को
किसी भी बात से
कुछ न करते बना
खुद में रहने की आदत
गया कोई
चाँदनी को क्या हुआ
जब से दिलों का फ़ासला
ज़मीं से आसमानों तक
जो पत्थर काटकर
जो पत्थर तुमने मारा था मुझे
दर्द बनकर आईना
दिल की सदा
दिया है दर्द जो तूने
दुखों के दिन
दूर तक जिसकी नज़र
धूप राहों में
पता नही
पहलू में उनके
पेड़ पौधा झील झरना
भरोसा करे किस पर
मुझको किनारा मिल गया
मुद्दत के बाद
मेरे मालिक
मेरे लिए
यह सुना है
यादों ने आज
ये दरिया
वफ़ा का गीत
वो इंसां भी
वो मुझसे आके मिलेगा
सितम जिसने किया मुझ पर
सुनामी के प्रति
सुरों में ताल में
हम बिखर भी गए
हर सितम हर ज़ुल्म

संकलन में-
अमलतास- अमलतास बौराया है
शुभ दीपावली- वहीं पे दीप जलेगा
          - दीवाली हर बरस
कचनार के दिन- जहाँ कचनार होता है
नयनन में नंदलाल- कन्हैया
फूले फूल कदंब- कदंब के पेड के पत्ते

 

हम बिखर भी गए

हम बिखर भी गए तो ज़माना कहे
हम हैं बिखरे हुए खुशबुओं की तरह

ग़ैर को भी हम अपना बनाते चलें
भुले-भटके को रस्ता दिखाते चलें
पाँव में जिनके छाले हैं उनके लिए
हम सहारा बनें बाजुओं की तरह

शब्द इंकार हैं तो ये इकरार भी
ये जो तक्रार हैं तो ये मल्हार भी
शब्द निकलें तो मन का अँधेरा मिटे
जलते-बुझते रहें जुगनुओं की तरह

हम जो पत्थर भी हों तो पिघलते रहें
जो समंदर भी हों ते मचलते रहें
आँधी जज़्बात की जब चले तो लगे
साँस भी बज उठी घुंघरुओं की तरह

24 मार्च 2007

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