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                   अनुभूति में
                  गोपाल कृष्ण सक्सेना 'पंकज' की रचनाएँ- 
                  अंजुमन में- 
                  
                  अब विदूषक 
                  कुछ चुनिंदा शेर 
                  चाँद को छू लो 
                  चाँद तारों पर 
                  दीवार में दरार 
                  पृष्ठ सारा 
                  मुहब्बत से देहरी 
                  शिव लगे सुंदर लगे 
                  श्रीराम बोलना 
                  हक़ीक़त है 
                  हिंदी 
                  की ग़जल 
                  मुक्तक में- 
                  तीन मुक्तक  
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                   श्रीराम बोलना 
                   
                  श्रीराम बोलना भी सियासत में आ गया 
                  अब तो ख़ुदा का घर भी अदालत में आ गया। 
                   
                  पहले भी तोड़ते थे उन्हें शाख़ से मगर 
                  फूलों का कत्ल अब तो तिजारत में आ गया। 
                   
                  बस ढूँढते रह जाओगे इंसान का चेहरा 
                  तारीख़ का वो दौर भी भारत में आ गया। 
                   
                  रघुकुल का क्या बिगाड़ेगी बदज़ात मंथरा 
                  वनवास अब तो राम की आदत में आ गया। 
                   
                  चुप ही रहो तो ठीक है इस रामराज्य में 
                  सच बोलना भी अब तो बगा़वत में आ गया। 
                   
                  चेहरे बिके बाज़ार में ग़ज़लों के इस तरह 
                  'पंकज' का शौके-फ़न भी तिजारत में आ गया। 
                  १ फरवरी २००५   
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