| 
                   अनुभूति में
                  गोपाल कृष्ण सक्सेना 'पंकज' की रचनाएँ- 
                  अंजुमन में- 
                  
                  अब विदूषक 
                  कुछ चुनिंदा शेर 
                  चाँद को छू लो 
                  चाँद तारों पर 
                  तीन मुक्तक  
                  दीवार में दरार 
                  पृष्ठ सारा 
                  मुहब्बत से देहरी 
                  शिव लगे सुंदर लगे 
                  श्रीराम बोलना 
                  हक़ीक़त है 
                  हिंदी 
                  की ग़जल 
                  मुक्तक में- 
                 | 
                  | 
                
                   मुहब्बत से 
                  देहरी  
                  मुहब्बत से देहरी जहाँ तर नहीं 
                  है 
                  मकां होगा बेशक मगर घर नहीं है। 
                   
                  मुखौटों मे यूं खो गया आदमी है 
                  हमारी ही सूरत हमीं पर नहीं है। 
                   
                  छूआ हमने उनको अभी तक नज़र से 
                  लबों का तो ऐसा मुक़ र नहीं है। 
                   
                  समर भूमि में जिसके पौस्र्ष ना 'पोरस' 
                  वो जीते भले पर सिकंदर नहीं है। 
                   
                  यहाँ सर झुकाना ही होगा मुनासिब 
                  झुके जिस जगह दिल ये वो दर नहीं है। 
                   
                  जो गम़ अश्क बनकर हमें ख़र्च कर दे 
                  वो गम़ ज़िंदगी की धरोहर नहीं है। 
                   
                  पता जिसपे 'पंकज' के सर का लिखा हो 
                  तुम्हारे शहर में वो पत्थर नहीं है। 
                  १ फरवरी २००५ 
                 |