अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सुवर्णा दीक्षित की
रचनाएँ —

नई रचनाएँ-
किसी के कहने से
जो दुनिया से कहूँ

दोस्तों में भी ये अदा हो कभी
मुहब्बत कुछ नहीं
हर वक्त चाशनी में

गीतों में-
कुछ लम्हों पहले

मुक्तक में-
तीन मुक्तक

 

कुछ लम्हों पहले

बस अबसे कुछ लम्हों पहले
इक आस का आलम था दिल पर

साँसों में महक थी फागुन की,
आँखों में शिकायत होती थी
मस्ती मे महकते आँचल को
ज़ुल्फ़ों से शिकायत होती थी
यादों की गली में साँझ ढ़ले
आता था कोई मेरे दर पर
बस अबसे कुछ लम्हों पहले . . .

अब कुछ भी नहीं है पास मगर,
इक धुंध का आलम छाया है
आवारा समय का चोर मुझे
मुझसे ही चुरा ले आया है
टूटा है घरौंदा सपनो का
तिनके बिखरे मेरे दर पर
बस अबसे कुछ लम्हों पहले...

रस्मों को निभाने की खातिर
मैं भी साँसें ले लेती हूँ
पूछा जो किसी ने "कैसी हो?"
'अच्छी हूँ', यह कह देती हूँ
मेहमान कोई भी खुशियों का
आता ही नही मेरे दर पर
बस अबसे कुछ लम्हों पहले...

खुद से मिलकर यूं लगता है
कब्रें भी साँसें लेती हैं
विष पीकर भी जो बुझ न सकें
कुछ ऐसी प्यासें होती हैं
मै भी तो प्यासे होंठ लिये
बैठी हूँ कबसे पनघट पर
बस अबसे कुछ लम्हों पहले...

शायद कोई मेरे ग़म को
सपनो के ताजमहल दे दे
बस इसी प्रतीक्षा मे अब तक
दुनिया भर के दुख हैं झेले
बोलो मैं कब तक और जिऊँ
यूँ हर पल हर क्षण डर–डर कर
बस अबसे कुछ लम्हों पहले...

२४ मार्च २००४

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter