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अनुभूति में सुवर्णा दीक्षित की
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किसी के कहने से
जो दुनिया से कहूँ

दोस्तों में भी ये अदा हो कभी
मुहब्बत कुछ नहीं
हर वक्त चाशनी में

गीतों में-
कुछ लम्हों पहले

मुक्तक में-
तीन मुक्तक

  हर वक्त चाशनी में

हर वक्त चाशनी में डूबा खुमार थोड़ी है
ज़िन्दगी सबकी गुलों का हार थोड़ी है

हार जाओगे बाज़ियाँ रिश्तो की तुम सारी
अभी आदतों में शुमार बाज़ार थोड़ी है

तुम कहो तो कह देंगे हम अज़ाब इसको
हमे तुमसे है ज़िन्दगी से प्यार थोड़ी है

हज़ारों बार किनारो पे टूट पडती है
अना लहरो की, पानी की धार थोड़ी है

हरेक पल नए सफर की दास्ताने हैं
ये जहाँ गए लम्हों की मज़ार थोड़ी है

अब जो रोका तो तोड़ देंगे कायदे हम भी
ज़िन्दा इंसान हैं, चीटियों की कतार थोड़ी है

वो तितली के परों को भी नोच लेता है
हवस है यह ये कोई कारोबार थोड़ी है

जो फ़ज़ाओं मे महकता है रातरानी सा
बडा कीमती है इत्र तेरा प्यार थोड़ी है

वो कह दे तो नही पलटेगा किए वादे से
शायर है मेरे मुल्क की सरकार थोड़ी है

१ अक्तूबर २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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