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अनुभूति में विशाल मेहरा की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
उज्र के रोगी से
ऐसा करार पहले न था
बहारों को सही से देखना

 

उज्र के रोगी से

उज्र के रोगी से रोग लगा बैठे
हाय के रकीब ने साबित किया कि तोहमत लगा बैठे।
कुछ नहीं तो मेरी खुशफ़हमी पे रहम रखते
क्या हाजत थी कद्रदानों की फ़हरिस्त सुना बैठे।
दफ़नाया जहमत से पुरानी मेहरबानियों को
हाय, वो तो फिर से मेहरबानी कर बैठे।
हमपे रियाज फरमाने का शुक्रिया
अलबत्ता गैरों पर तो आप निहायत हो बैठे।
महफ़िलें खिलती हैं पुराने यारों से
यकीनन लेकिन उसकी गोद में क्यों जा बैठे?
कभी कतराने की आदत थी उनको
फिर तो वोह सुरूर पे सुरूर दे बैठे।
गफ़लत सुकून की राजदार है
डर है वो ये बेदर्दी न कर बैठे।
गली में लगी कतार उनके कद्रदानों की
हे राम, कुछ तो मेरे घर में आ बैठे।
इस दुनिया में शोहरत कम न पाई आपने
अपने सनम को तो बताइये कैसे कर बैठे।
उज्र कोई उनकी मजबूरी न थी
ये किस्सा खुशी–खुशी खुद ही कह बैठे।
आपको तो वो 'बेदर्ज' बिठा गये
गनीमत समझिये आप कुछ न कर बैठे।

१ सितंबर २००१

 

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