अनुभूति में
विकास चंचल की रचनाएँ
कविताओं में-
कल्लो अम्मा
झूठ या हकीकत
तीन क्षणिकाएँ
सज़ा
हँसी
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सज़ा
तमाम चेहरे
जो ज़िन्दगी के सफ़र में मिले
उन सभी के गिले शिकवे
हमने गिन-गिन के जोड़े
और फिर एक दिन
खुद पे मुक़द्दमा ठोका
खुद को कठघरे में खींच
दे डाली सज़ा
काट डाले दोनों हाथ
चुभो डाले सौ नश्तर दिल में
फोड़ डाली अपनी आँखें
बुझा डाले सारे चिराग
सुना दी सज़ा ए ज़िन्दगी
एक मुर्दा को...
दे दी सज़ा
सांस लेते रहने की...
४ अगस्त २००८ |