कल्लो अम्मा...
कर्ज़ा लिया था उसने हमसे
घर के काग़ज़ गिरवी रखकर
दूध बेचती थी बस्ती में
भैंसों वाली कल्लो अम्मा...
सर्दी की शामों में जब हम
ठिठुर काँपते रुके रहते थे
आग जलाती थी बिन बोले
भैंसों वाली कल्लो अम्मा...
टीबी का मरीज़ बिन इलाज
मरद जब उसका गुज़रा तब भी
बस थोड़ी-सी खामोश रही थी
भैंसों वाली कल्लो अम्मा...
रस्ते में जो अंधेरी गली थी
जिसमे में डरा करता था
बिन कहे छोड़ कर आ जाती थी
भैंसों वाली कल्लो अम्मा...
असली नाम नूरजहाँ था उसका
सारे ग्राहक हसा करते थे
वो बेचारी भी हस लेती थी
भैंसों वाली कल्लो अम्मा...
आज परदेस में बैठे मुझको
खबर मिली है ये अनहोनी
वो जो रहती थी बस्ती में
भैंसों वाली कल्लो अम्मा...
ग्राहक सारे टूट गए थे
उसकी भैंसें गुज़र गई थी
खुद वो भी कल गुज़र गई है
बिन भैंसो वाली कल्लो अम्मा...
४ अगस्त २००८
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