चाहत ही चाहत
हो चारों ओर
चाहत ही चाहत हो चारों ओर
मिट जाए ये घटा घनघोर
वन में नाचें फिर से मोर
हो मोहब्बत की ऐसी डोर
मोहब्बत की नदिया हो गहरा हो पानी
न मोहब्बत हो झूठी हो सच्ची कहानी
झूठे बंधन हैं सब यहाँ पे
ख़त्म करो अजी उनका शोर
चाहत ही चाहत हो चारों ओर
बसंत का मौसम हो
हो फूलों पे जवानी
न गमों की रात हो
हो रुत सुहानी
चाहत की चाँदनी हो चारों ओर
न मोहब्बत पे हो किसी का ज़ोर
चाहत ही चाहत हो चारों ओर
१४ अप्रैल २००८
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