अनुभूति में
संजीव कुमार बब्बर की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
आँधी
अपाहिज
क्यों फैला है भ्रष्टाचार
मुस्कुराना ज़रूरी है
याद आई
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क्यों फैला है
भ्रष्टाचार
अपने मन में अक्सर सोचा करता हूँ कई बार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
नेता और अधिकारी सारे क्यों हैं मालामाल
मेहनत कश और मज़दूर देश का हो गया कंगाल
वीर सिपाही सीमा पर करता यही पुकार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
अनेक धर्म हैं अनेक भाषाएँ फिर भी एक तिरंगा
हिन्दू और मुस्लिम के बीच में क्यों होता है दंगा
मैंने देखा इन्सानियत को बिकते बीच बाज़ार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
कभी तो मानव जागेगा लिए बैठा यही आस
करेगा सो भरेगा तू क्यों है बब्बर उदास
साई कहते इस जग में मतलब का व्यवहार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
ग्यारह बच्चे घर में हैं पर है जनगणना अधिकारी
औरों को शिक्षा देते कहाँ गई अकल तुम्हारी
झट से बले सब ज़ायज़ है यहाँ अपनी है सरकार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
बचपन में पापा कहते थे ईश्वर भाग्य विधाता है
जन्म देने वाली मां से बढ़कर अपनी भारत माता है
आज ईमानदार और सत्यवादी बहुत हो चुका लाचार
अपने देश में ही क्यों फैला है इतना भ्रष्टाचार
१५ सितंबर २००० |