अनुभूति में
संजीव कुमार बब्बर की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
आँधी
अपाहिज
क्यों फैला है भ्रष्टाचार
मुस्कुराना ज़रूरी है
याद आई
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आँधी
कल रात की आँधी ने
एक चिनगारी से
इस सुलगते हुए दिल
को जला डाला
जो राख बनी थी उसे
हवा ने उड़ा डाला।
कल तुमने अपने चमन से
एक भँवरे को भगा डाला
जो सिर्फ गम पीता था
उसे तूने ज़हर पिला डाला।
कल की आँधी ने मेरा
सब कुछ उड़ा डाला
जो कुछ मेरा था उसे
पड़ोसी के यहाँ पहुँचा डाला।
कल की आँधी ने
एक आदमी को
जानवर बना डाला और
उस जानवर को तूने जला डाला।
१५ सितंबर २००० |