अनुभूति में
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शिव जी के यहाँ चोरी
एक बार सारे चोर चोरी करने से सुस्ता गये
चोरी के प्रोफेशन से उकता गये
सारी चोरियाँ रोकीं
और किसी भगवान के पास जाने की सोची
नारद जी सारे चोरों को आते देख घबरा गये
सारे दरवाजे बंद कर एक इश्तिहार लटका गये
बुरी नज़र से मेरे मकान की तरफ देखना भी पाप है
कुछ भी गड़बड़ होने पर चींटी बनने का श्राप है
सबने कैलाश पर्वत की राह बनायी
और शिवजी को फरियाद सुनायी
सब बोले,
"हम अपने पिछले जन्म के पापों को
इस तरह क्यों चुकायें
और भी तो धन्धे हैं चोर ही क्यों बन जायें
आपको ऐसा क्या रास आया
कि हमें चोर ही बनाया?"
शिवजी बोले,
"ये तो कर्म का धागा है
हम सबको अलग अलग ही पहनाते हैं
जहाँ तक चोरी का सवाल है
कुछ कमाते हैं कुछ बचाते हैं
और कुछ गँवाते हैं।"
चोरों को बात समझ आई
सबने अपने घरों की राह बनायी
थोड़ी देर बाद पार्वती जी आई
और शिवजी की, की खिंचाई,
"रास्ते में नारद कह रहा था
चोर घूम रहे हैं क्या घर की ठीक रखवाली है?"
अन्दर जाते ही चिल्लायी,
"हम लुट गये बर्बाद हो गये सारी तिजोरी खाली है।"
१६ जनवरी २००३
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