अनुभूति
में पुष्यमित्र की रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
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गाँव की तकदीर
चुंबन की निशानियाँ
पतंगबाज
पर्वत और नदी
सुबहें
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पतंगबाज
जब भी घर से निकलती हूँ
बता देते हो सारे रास्ते।
समझा देते हो
ट्रैफिक के नियम, एक्सीडेंट के खतरे।
बचा लेना चाहते हो
उन तमाम दुर्घटनाओं और असफलताओं से,
ऊपर वाले ने गढ़ा होगा बड़े प्यार से जिसे
मेरी सादा ज़िंदगी को चितकबरा बनाने के लिए।
तुम्हारे पिंजरे से बाहर निकलना चाहती हूँ,
यह जानकर मुझे बना देते हो पतंग।
बाँध देते हो मेरे पंखों में कमानियाँ
और खुद थामे रहते हो
लटेर बनकर एक छोर।
जब चाहते हो ढील देते हो
और जब जी आया समेट लेते हो।
बचा लेते हो कटने से हर बार मुझे।
और मैं भी मान लेती हूँ
मेरे पतंगबाज
तुम मुझे प्यार करते हो।
९ मई २००६ |