अनुभूति
में पुष्यमित्र की रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
उदास चेहरे
गाँव की तकदीर
चुंबन की निशानियाँ
पतंगबाज
पर्वत और नदी
सुबहें
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चुंबन की निशानियाँ
इश्क
मैंने चाहा था
रहे हमेशा
मेरे पास।
मगर
जब भी वह आया।
गालों को हल्के से चूमकर
गुजर गया चुपके से।
हर बार
आँसुओं से धोता रहा मैं,
उसके लौट जाने का गम।
और हर बार
धुल गई गालों से,
उसके चुंबन की निशानियाँ।
९ मई २००६ |