अनुभूति में नीरज
त्रिपाठी की
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यमदूत
शनिवार
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यमदूत
कल रात को अचानक
दो चेहरे दिखे भयानक
मैने पूछा क्या आप भूत हैं
जवाब मिला हम यमदूत हैं
एक पहने था जीन्स एक पहने था जाँघिया
काले काले मोटे मोटे वो लगते थे माफिया
पहले तो मैं सकपकाया
फिर अपना साहस जुटाया
मैंने पूछा आपको मुझसे क्या है काम पड़ा
वो बोले चलो बेटा भर गया है तुम्हारे पाप का घड़ा
मैंने थोड़ा मक्खन लगाया
पास पड़ी चेकबुक को उठाया
पूछा कितने का चेक काट दूँ
क्या सारी रकम आप दोनों में बाँट दूँ
वो बोले मिस्टर हम यमदूत हैं नेता नहीं
यमलोक में कोई किसी से घूस लेता नहीं
मैं बोला ये यमलोक नहीं मेरी धरती माई है
और ये पैसा घूस नहीं आपके बच्चों की मिठाई है
ये सुनते ही उनका पारा चढ़ गया
मेरा तो सारा सिस्टम बिगड़ गया
उन्होंने फेंक दिया मेरे गले में एक फन्दा
तब मैंने चेक किया कि मैं मर गया हूँ या हूँ जिन्दा
मैंने अपने आपको मरा पाया
घड़ी के अलार्म ने तब मुझे जगाया
ये तो था एक सपना तो मैं बच गया
उठकर नहाने गया तो मैं सिहर गया
मैं अपनी जाँघिया को
यमदूत की जाँघिया समझकर डर गया।
९ सितंबर २००६
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