अनुभूति में नीरज
त्रिपाठी की
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आविष्कार
एक दिन आया मन में मेरे विचार
क्या होगा यदि खत्म होने लगें आविष्कार
पूर्वजों से सहर्ष करते हम इनको प्राप्त,
होगा क्या यदि आविष्कार होने लगें समाप्त,
यही सोचते सोचते शुरू हुआ प्रकृति का एक अनूठा खेल,
अौर एक एक कर होने लगे आविष्कार फेल,
फेल होने की सूची में प्रथम आविष्कार था अखबार
मन होने लगा परेशान कहां से मिलेंगे समाचार
क्या किताबों पर चढ़ाएंगे
क्या अलमारी में बिछाएंगे
अरे यदि खत्म हो जाएंगे अखबार
तो कहां देंगे हम लोग अपनी शादी का इश्तिहार
अब न कोई तनाव होगा न कोई हड़बड़ी
क्योंकि खत्म हो रहे हैं कैलेंडर और घड़ी
किसी भी काम के लिए कोेई लेट नहीं होगा
और सबसे मूल्यवान वस्तु समय का कोई रेट नहीं होगा
नहाना रोज पड़ेगा मालिक हो या सरवैन्ट
क्योंकि खत्म हो रहे हैं परफ्यूम और डियोड्रैन्ट
यदि गुरूत्वाकर्षण का नियम मौन होगा
तो प्यार में गिरने वालों के लिए जिम्मेदार कौन होगा
फास्ट फूड सब खत्म हो गए हुआ जमाना स्लो
होने लगी खत्म फैशन की झूठी ग्लो
लड़कियों के मन में बैठ गया गम
मनाया सार्वजनिक मातम
चेहरे की रंगाई पुताई का यदि खत्म होगा काम
तो बढ़ती उमर पर कैसे लगेगी लगाम
सफेद बालों को काला, काले चेहरों को सफेद करेंगे कैसे
बिना नकली दांतों के लोग हंसेंगे कैसे
देखते ही देखते खत्म हुए हथियार
कई वेल सेटल्ड वेल क्वालीफाइड आतंकवादी बेरोजगार
खत्म हुआ डीजल पेट्रोल
आंदोलनकारियों को नहीं परवाह
पानी डालकर अब भी कर रहे हैं आत्मदाह
स्वयं को मानव से आदिमानव बनते देख
टूटने लगा था मन विचारों का दर्पण
कर रहा था मैं आविष्कारों के सम्मुख
खुद को आत्मसमर्पण
तभी अचानक पता चला
कि छोड़कर ये सब इधर उधर के लफड़े
जो अगला आविष्कार खत्म हो रहा है
उसका नाम है कपड़े
९ सितंबर २००६
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