अनुभूति में
मानोशी चैटर्जी की रचनाएँ
अंजुमन में—
अपनी
निशानी दे गया
कोई तो होता
लाख चाहें
ये जहाँ मेरा नहीं है
हज़ार किस्से सुना रहे हो
गीतों में—
होली
गीत
कविताओं में—
आज कुछ
माँगती हूँ प्रिय
एक उड़ता ख़याल–दो रचनाएँ
कुछ जीर्ण क्षण
चलो
चुनना
ताकत
पुरानी
बातें
मेरा साया
लौ और परवाना
स्वीकृति
संकलन में—
दिये
जलाओ- फिर दिवाली है |
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चलो
चलो हम आज
सुनहरे सपनों के
रुपहले गांव में
घर बसाएँ
झिलमिल तारों की बस्ती में
परियों की जादू छड़ी से
अपने इस कच्चे बंधन को
छूकर सोने का बनाएँ
तुम्हारी आशा की राहों पर
बाँधे थे जो ख़्वाबों से पुल
चलो आज उस पुल से गुज़रें
और क्षितिज के पार हो आएँ
हवा ने भी चुराई थी
कुछ हमारी बातों की खनक
रिमझिम पड़ती बूँदों के संग
चलो उन स्मृतियों में घूम आएँ
बाँधी थीं सीमाएँ हमने
अनकही कुछ बातों में जो
चलो एक गिरह खोल कर
आज बंधनमुक्त हो जाएं
चलो हम आज
सुनहरे सपनों के
रुपहले गाँव में
घर बसाएँ
१ सितंबर २००६
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