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अनुभूति में हिना गुप्ता की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
चाहत
सपना
जिन्दगी

चाहत

जब लिख जाती है गोली
नियति किसी की
रोती होगी करूणा
सर झुकाए कहीं
उस गोली की गति
नापना चाहती हूँ।
बस शांति चाहती हूँ।

जब अट्टहास करती है घृणा
करूणा की दरिद्रता पर
सुना है विजयी होता है तम
तब उजाले पर
घृणा की प्रचंड अनल
कांतिहीन करना चाहती हूँ
शांति चाहती हूँ।

जब घायल होती है मानवता
तरूणाई भटकती सी लगती है
सूखे अँधेरे पर खिल आई
मुस्कान सिसकती सी लगती है
मानवता के भग्नावशेषों में
कुछ फूल चुनना चाहती हूँ
शांति चाहती हूँ।
बस शांति चाहती हूँ।।

२४ अगस्त २००४

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