परिचय
तुम्हें अवलोकित किया
तो
तार उर-वीणा के झनझना उठे,
द्विरेफ रसाप्लावित हो मधुर गीत गा उठे;
औ' मेरे-तुम्हारे हृदय का,
आत्मानंद के साथ तादात्म्य स्थापित हो गया।
तुम हँस उठीं,
फिर विहँस उठीं;
औ' लजाते हुए, पलकें झुकाते हुए,
तुम्हारा चिराकुल स्नेह ज्ञापित हो गया।।
तुम्हारी महक से भाव नवीन हो गए,
प्रेमाचार में हम अब प्रवीण हो गए;
औ' शलभ लौं पल-विपल,
वह्नि में प्रज्ज्वलित होकर सर्वस्व समर्पित कर दिया।
द्विरेफ-पुष्प ईर्ष्या कर रहे,
हृदय हमारे डर रहे,
औ' इसी डर के साथ, सौंप स्वयं को प्रीति के हाथ,
उन्मत्तता में तन-मन आलिंगित कर दिया।।
अनुराग सबल-सशक्त हुआ,
हृदय अधिक अनुरक्त हुआ;
औ' प्रणय डोर में आबद्ध कर तुमने,
जीवन प्रेमानंद से पूर्ण कर दिया।
तुम्हारे प्रेम ने यौवन दर्शाया,
मेरी आसक्ति ने उन्माद दिखाया;
औ' मेरा हृदय हर; मकरंद प्रसारित कर
तुमने गृह में आह्लाद भर दिया।।
२१ अप्रैल २००८