क्रम
झंकृत हो उठा चंद्रिका-युक्त वातावरण
पावस ऋतु की स्वर्णिम वृष्टि से।
भावातिरेक हो गया हृदय
वस्तुहीन प्रफुल्ल-उन्मत्त दृष्टि से।।
इस मनोरम दृश्य से उदित हुई
आनंदोल्लास की एक नव किरण।
विद्युत का, नक्षत्रदीप्त गगन में
हुआ अनायास ही स्पृह-स्फुरण।।
स्थानापन्न हुए जलद; विलीन हुई
चांदनी औ' द्युतिवान नक्षत्र ।
प्रवाहित शीत लहर की भयावह ध्वनि,
निस्तब्ध वीभत्सता! अत्र-तत्र-सर्वत्र।।
नीरव कालिमा द्रष्टव्य हुई,
हुआ प्रफुल्ल-भाव विक्षुब्ध।
किंतु लुप्त हुई कालिमा
शनैः-शनैः और हृदय हुआ लुब्ध।।
पूर्व में लालित्य निहित,
उदित हुआ किरणोज्ज्वल दिनेश।
यों होता है परिणत, प्रतिपल
पावस - ऋतु - प्रदेश।।
२१ अप्रैल २००८