अनुभूति में असीम नाथ त्रिपाठी
की रचनाएँ
कविताओं में-
इम्तिहान
याद आता है
यों ही मन मे एक ख़याल
क्षणिकाओं में-
क्यों, बीता हुआ ज़माना, ज़रा मुड़ के तो देखो
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यों ही मन में एक ख़याल
यों ही मन मे एक ख़याल
आया...
कि हमेशा एक-सा क्यों नही रहता हूँ
मैं?
कभी ख़ुश कभी उदास क्यों हो जाता हूँ?
क्यों कभी शाम की ठंडी
हवाएँ भी मनहूस लगती है?
क्यों कभी चिलचिलाती धूप भी खुशगवार लगती है?
क्यों आज ख़ुशी बाँटने का जी करता है?
तो कल उदासी सँभले नही सँभलती?
ये दिन हमेशा एक से क्यों
नही रहते?
क्या मैं हमेशा ख़ुश नही रह सकता?
आख़िर वो क्या चीज़ है,
जो आज ख़ुशी तो कल उदासी पैदा कर देती है?
मैं खोजता हूँ ऐसे मनुष्य को
जो हमेशा ख़ुश रहता हो, पर
दुर्भाग्य, ऐसा अब तक कोई नही मिला मुझे,
तो क्या हर व्यक्ति मुझ जैसा ही है!
क्या सभी को ख़ुशी कि तलाश है?
पर ख़ुशी मिलती कैसे है?
पैसे, नौकरी, सामाजिक स्तर, शानशौक़त
से?
तो क्या आज सारे पैसे वाले ख़ुश हैं?
सभी कार वाले, बंगले वाले ख़ुश हैं?
शायद नही
इनके पास तो वो सब कुछ है, जिनसे मैं ख़ुश हो सकता हूँ
तो वे क्यों नही!
इन्हें कैसे ख़ुशी मिलती है?
इन्हें किस चीज़ की तलाश है!
हम सबसे बेहतर तो वो ग़रीब मज़दूर है
जो अपनी टूटी झोंपड़ी मे ख़ुश हो लेता है।
७
जनवरी २००८
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