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अनुभूति में अरुणा घवाना की 
रचनाएँ—


छंदमुक्त में-
अलाव
इंतज़ार
मौन

अलाव

सर्दी के मौसम में
अलाव तापते लोग
सर्द हवाओं को धोखा देना चाहते हैं शायद
या सर्द हवाओं को काट फेंक देना चाहते हैं।
सर्दी तो बाहर है
पर एक सर्द आह मेरे अंदर भी है
तभी तो लोकतंत्र का
लोक और तंत्र बिखरा नज़र आता है
शव की शवयात्रा के लिए भी आज आग नहीं
तपिश नहीं
जले कैसे शव जैसे अरमान
सर्दी का मौसम है
फिर भी जल रहे हैं लोग।
अलाव के आसपास बैठे लोग
चिथड़ों में अपने को छिपाने की
अनोखी व बेजार कोशिश करते लोग।
मैं दूर खड़ा सिगरेट के कश पर कश लिए देख रहा हूँ
दुबली–पतली काया वाली वह औरत
एक कटीफटी धोती में कभी खुद को
कभी अपने अधमरे बच्चे को बचाने का प्रयास करती
यों ही मरी सी जा रही है
कभी यहाँ से खींचती धोती
कभी वहाँ से खिचती धोती।
मेरे एक और कश के बाद
खिचने–खिचाने में
चिथड़ों में लिपटी औरत
और चिथड़ा फट गया
सर्दी का मौसम है
उसके जिस्म से अलाव तापते लोग।

९ मार्च २००५

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