सुख और दुख
सुख–दुख जैसे
धूप और छाया, पलपल आता जाता है।
सुख में कितना हँसता था तू दुख से क्यों घबराता है।
घोर अमावस का
मतलब है कल फिर चंदा आएगा।
कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष हो, पखवाड़े का नाता है।
कितनी प्यारी
लगती सबको रामचंद्र की वह गाथा।
जिसमें सुख तो नाम मात्र है, दुख संकट ही ज़्यादा है।
जिसके सारे
सच हो सपने, जग में ऐसा कोई नहीं।
तेरा सपना टूट गया तो क्यों इतना पछताता है।
पत्थर की यदि
होती वाणी, तब तुम को बतलाता वह।
कितनी पीड़ाएँ सहसहकर मूरत वह बन पाता है।
सुखदुख जैसे
धूप और छाया, पलपल आता जाता है।
सुख में कितना हँसता था तू दुख से क्यों घबराता है।
9 फरवरी 2006
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