जीवन यों ही
बीत गया
तिनका-तिनका महल बनाते, जीवन यों ही बीत गया।
कुछ पाने को सब कुछ खोया, अपना घट अब रीत गया।
जग ने जितने दाँव बिछाए, सबको
जीता बहुत सहज।
मन की बाजी दाँव लगी तब, मैं हारा जग जीत गया।
फल है तब तक सुंदर उपवन, पतझ
किसको प्यारा है।
जब बसंत था सब अपने थे, मौसम बदला, मीत गया।
जब तक समझा मैंने उसको, हमराही
थे हम दोनों।
जब चाहा वो मुझको समझे, उस दिन मन से मीत गया।
शब्द नहीं थे, राग नहीं था, भाग
भरे थे जब मन में।
अब सब कुछ है जीवन में बस गीत गया, संगीत गया।
16 जनवरी 2007 |