अनुभूति में
डॉ
आदित्य शुक्ल
की कविताएँ—
जीवन यों ही बीत गया
तुम चंदा-सी शीतलता दो
सुख
और
दुख
यदि मिल जाएँ पंख उधार
लगता है कोई बोल रहा है
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लगता है कोई बोल रहा है
सूने आँगन की दहलीज में, लगता है कोई बोल रहा है।
मेरे मन के विश्वासों को, लगता हो कोई तोल रहा है।
आशाओं की किरणों से, दीप जल रहा हौले-हौले,
घोर तिमिर में जीवन पथ पर, आज उजाला घोल रहा है।
द्वार पर ताले पड़े थे, दस्तक सुनने कान खड़े थे,
आज किवाड़ी इस आँगन की, लगता है कोई खोल रहा है।
श्रवण कभी कुछ सुनना चाहा, केवल हा-हा कार सुना,
आज अलि-सी सुमधुर तानें, कानों में कोई घोल रहा है।
वीराना कब से था उपवन, नीरस पड़ा रहा यह जीवन,
न जाने बीनू अब क्यों तेरा, मन मयूर-सा डोल रहा है।
16 जनवरी 2007
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