अनुभूति में
अभिनव कुमार सौरभ की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
दो क्षणिकाएँ
ए री प्रीतम
जाने कितनी कोशिशें की
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जाने
कितनी कोशिशें की
लफ्जों के लिफाफे में,
दिलों के किनारे,
ठूँसने की,
जाने कितनी कोशिशें की।
बुलाने की और समझाने की,
बतियाते हुए शरमाने की,
टिप–टिप में भीगने की,
कानों में हौले से कुछ फुसफुसाने की,
जाने कितनी कोशिशें की।
एक शाम, साथ में गुनगुनाने की,
गुज़ारिशों और इंतज़ार की,
गुजरते पलों को जुटा कर,
डूबती परछाइयों की,
एक झिलमिलाती गाँठ बाँध लेने की,
जाने कितनी कोशिशें की।
गीले लबों से अपना सुर्ख नाम सुनने की,
साँसों के कोनों से जख्मी होने की,
हर वर्ष, उम्र की नई पत्तियों पर,
तुम्हारा हरा–गेहुआँ रंग उकेरने की,
जाने कितनी कोशिशें की।
सुनी हुई तस्वीरों पर,
यकीन न करने की,
पतझड़ के पत्तों की तरह,
डाली से खोए हुए,
मुद्दों के फासलों की,
परवाह न करने की,
जाने कितनी कोशिशें की।
धुँधली होती,
सड़क की रेखाओं की तरह,
मिटते संबंधों को,
स्याह रूप न देने की,
जाने कितनी कोशिशें की।
२४ दिसंबर २००४
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