अनुभूति में
अभिनव कुमार सौरभ की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
दो क्षणिकाएँ
ए री प्रीतम
जाने कितनी कोशिशें की
|
|
ए री प्रीतम
ए री प्रीतम
कहाँ है तू
भीड़ तो बहती है बहुत आस–पास,
क्यों कोई नहीं बुझाता ये प्यास
गर, तेरे दिल से कोई,
टाँक देता मेरे दिल के धागे
गर, तेरी गोद में,
ठुँकी होती मेरे अरमानों की अकेली कील
गर, मेरी सोच,
तेरी धड़कनों से टकराई होती
गर, धुएँ की एक लकीर न खींची होती,
और तू उस पार न खड़ी होती
गर, उड़ा न ले जाती हवा,
धुएँ से बनी तेरी तस्वीर
गर, न घुले होते,
दिल के बुरादे हर गहरे कश में
क्यों सिहर उठती हूँ,
ये सोच कर,
चुक जाएगा दिल तेरे इश्क की चाक पर
ए री प्रीतम
कहाँ है तू२४
दिसंबर २००४
|