अनुभूति में
अलका मिश्रा की रचनाएँ
अंजुमन में-
अब किसी से मुझे क्या
इक तिश्नगी से
क़फ़स में मुझको रखकर
याद आती है तेरी
सज़ा मुझको वही
मुक्तक में-
चाँद यों झाँकता है |
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इक तिश्नगी से
इक तिश्नगी से सबक यहाँ वास्ता मिला
साहिल पे समंदर भी है प्यासा सदा मिला
मुझ पर मोहब्बतों का नशा यों हुआ कि फिर
तेरी ही शक्ल में मुझे मेरा खुदा मिला
कैसे सँभाले वो भी भला अपनी ज़िंदगी
हर मोड़ पर जिसे है नया हादिसा मिला
सूरज की हो तपिश, या हों घनघोर बारिशें
हर वक़्त तेरा साया तेरा आसरा मिला
तुम छोड़ कर गए थे मुझे जिस मुक़ाम पर
पलकें बिछाए अब भी वहीं रास्ता मिला
उसकी नज़र से देखी है जब से ये ज़िंदगी
ख़ुद को ही देखने का नया ज़ाविया मिला
किस किस की बात मुझसे करोगे बताओ तो
मुझको तो जो भी शख्स मिला, दिलजला मिला
किससे करें उम्मीद मदद की यहाँ पे हम
हर कोई अपने ग़म में ही बस मुब्तिला मिला
१ अक्तूबर २०१५ |