मुक्तक
एक
चाँद यूँ झाँकता है बादल से।
जैसे आँखें सजी हों काजल से।
उसने सिंगार कर लिया ऐसा,
लोग होने लगे हैं पागल से।
दो
घटा सावन की जो छाई तो बरस
जायेगी।
कोई आँधी उसे फिर रोक नहीं पाएगी।
'कशिश' की कद्र नहीं तुमको ज़माने वालों,
बाद जाने के मेरी याद बहुत आएगी।
तीन
ज़िन्दगी दो चार लम्हों की
कहानी है।
फिर न राजा है कहीं कोई न रानी है।
बाँट कर खुशियाँ मना लो जश्न हर लम्हा ,
वक़्त ठहरेगा नहीं ये बहता पानी है।
चार
ज़िन्दगी को सफ़र ही कहते हैं।
इसलिए सब सफ़र में रहते हैं।
उनको मंजिल कभी नहीं मिलती ,
रास्ते जो बदलते रहते हैं।
पाँच
साँस लेने को फकत ज़िन्दगी जो
कहते हैं।
दिल के रिश्तों से भी महरूम वही रहते हैं।
गैर की आँख का आँसू जिसे रुलाता है,
खुदा-ए- पाक भी रहमत उसी पे करते हैं।
११ नवंबर २०१३ |