आधुनिकता छै छोटे व्यंग्य
परिवर्तन
आज की स्थिति का चित्र साफ़-साफ़ है बेटी/बेटों
की करतूतों से आजिज़ बाप है।
तन-धन
अब तन ढकने के लिए कपड़ा घट जाता है, तन, धन
में बिक जाता है सब कुछ दिख जाता है। ताक धिना-धिन हो जाता है।
वेतन
वो हमें पहली तारीख को गले से लगाएँगे तब आप
ही बताएँ हम बाकी बचे दिनों में और कहाँ जाएँगे?
अँगूठा दिखाना
आधुनिक एकलव्य गुरुदक्षिणा में अब गुरु जी को
अंगूठा दिखाते हैं गुरु जी - इक्कीसवीं सदी में आए परिवर्तन को देखकर
मंद-मंद मुस्कुराते हैं।
मुड़ते ही
कुड़ी वल्कल वस्त्रों में उसकी ओर मुड़ी
मुड़ते ही - धमाल हो गया विक्रम, बेताल हो गया।
पानी पिलाना
वो बड़ों-बड़ों को पानी पिलाती है जनाब!
पौसला चलाती है।
1 अप्रैल 2007
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