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  नौ ताँका कविताएँ


ज्वर से तपे
जंगल के पैताने
आ बैठी धूप
प्यासा बेचैन रोगी
दो बूँद पानी नहीं



बहुत छोटा
तितली का जीवन
उड़ती रहे
पराग-पान करे
कोई कुछ न कहे



अपने भार
झुका हरसिंगार
फूलों का बोझ
उठाए नहीं बने
खिले इतने घने



पाँत में खड़े
गुलमोहर सजे
हरी पोशाक
चोटी में गूँथे फूल
छात्राएँ चलीं स्कूल



फेंकता आग
भर-भर के मुट्ठी
धरा झुलसी
दिलजला सूरज
जलाके ही मानेगा



सुन रे बच्चे
सपने तेरे बड़े
नयन छोटे
आकाश तेरा घर
ले उड़ान जीभर



मीठी है हँसी
मधुर बचपन
बेफ़िक्र दौड़
सपनों की गठरी
उटाए फिरे मन



बिना पंख के
उड़ती है लड़की
खुले आकाश
बरज रही दुनिया
माने न कोई बाधा



सूरज हँसे
धरा कैसी दीवानी
अजब नशा
रोज़ देखे सपने
कभी न हों अपने

२३ मई २०११

 

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