अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में योगेश समदर्शी की रचनाएँ

गीतों में-
आओ खेलें खेल
आज कलम उनकी जय बोल
खाना सीख
चुलबुल कर

मस्ती वाली बातें कर

 

 

आओ खेलें खेल

वैसे वाला खेल, पैसे वाला खेल
आओ खेलें खेल

झूठ मूठ की बातें करके
अपनी सुन्दर, रातें करके
हवा में टावल को लहरा कर
दूजों को दोषी ठहरा कर
खूब माल तू पेल
आओ खेलें खेल

अट्टा बट्टा खेलें सट्टा,
हम थाली के चट्टा बट्टा
खुद तो खावें मीठा मीठा,
तुझको सरका देंगे खट्टा
पंगा तू ही झेल
आओ खेलें खेल

बाजी बाजी एक दम ताजी
खेल खेल में हाँ जी ना जी
मिल जुल कर तू माल बना जी
मतकर ठेलम ठेल
आओ खेलें खेल

बिंदू सिन्दू,राजा बंधू,
संत सरीखे सारे बंधू
एक दम नेक, कमी न एक
सबने देखा तू भी देख
लगी खेल की सेल
आओ खेलें खेल

१५ जुलाई २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter