|
वन बिलाव
वन बिलाव पी गया नदी,
सारा जंगल गवाह है।
जिसकी लाठी में है ज़ोर,
वही हाँक ले जाता ढोर,
शोर करें भेड़ बकरियाँ,
चुप कर दी गर्दनें मरोर,
रोती अभिशापिता सदी,
मुस्काता शहनशाह हैं।
दावानल मचल रहा है,
वन प्रांतर दहल रहा है,
पंछी ची चाँव-चाँव करते,
अजगर कुछ निगल रहा है,
सहम गए बस्ती के लोग
कैसी यह वाह-वाह है?
सुबह शाम अंधकार है,
धुआँ-धुआँ बेशुमार है,
दीपक कमज़ोर है बड़ा,
मंद मियादी बुखार है,
जलता है खा-खा के नीम
राजवैद्य की सलाह है।
१ जनवरी २००६
|