अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में विष्णु विराट की रचनाएँ-

गीतों में-
कुछ व्यथित सी
प्यार की चर्चा करें
राजा युधिष्ठिर
रोशनी के वृक्ष
वनबिलाव
व्याघ्रटोले की सभाएँ
वेदों के मंत्र हैं
शेष सन्नाटा
सुमिरनी है पितामह की

संकलन में-
ममतामयी- माँ तुम्हारी याद
पिता की तस्वीर- पिता

 

कुछ व्यथित सी

कुछ व्यथित-सी
कुछ थकित-सी
कुछ चकित-सी
धूम्रवन से लौट आई
लाल परियाँ

चक्रवाती जंगलों की आँधियों से
वामतंत्री कुचक्रों की व्याधियों से
व्याघ्रवन में सर-सरोवर ख़ौफ़ खाए
काँपते-से हिरन के दल थरथराए
हार कर सब दाव
सारे स्वप्न अपने
कुछ भ्रमित-सी
कुछ श्रमित-सी
प्रकंपित-सी
उस विजन तक जा न पाई
लाल परियाँ

राग से और रंग से मुंह मोड़ती-सी
स्वर्ण कमलों के प्रलोभन
छोड़ती-सी
नदी झरने जादुई चक्कर घनेरे
हर लहर में मगरमच्छों के बसेरे
श्लथ हुए कटिबंध
भीगी कंचुकी में
कुछ डरी-सी
अधमरी-सी
सिरफिरी-सी
हाल कुछ समझा न पाई
लाल परियाँ

सांध्यवर्णी शुचि ऋचाएँ
गुनगुनाते
व्योम से कुछ
स्वर्णकेशी यक्ष आते
रंगपर्वों के निमंत्रण दे रहे हैं
गूँजते नभ तक प्रमादी क़हक़हे हैं
ऊर्ध्वगामी दृष्टियों के निम्न स्वारथ
देवतामन,
ऋषि पुरातन
सब अपावन
स्वस्ति गायन गा न पाईं
लाल परियाँ।

१ जनवरी २००६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter