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अनुभूति में वीरेन्द्र आस्तिक की रचनाएँ-

गीतों में-
कैसे हैं चमत्कार
दूरी
बिखरे हिमखंड

वोटर उवाच

 

 

  बिखरे हिमखंड

तितर-बितर कर दिए गए हो
सोचो फिर जुड़ाव की।

दल-संस्कृति से मिला तुम्हें क्या
कबीलियाई खून-खराबा
टूटा ध्वज, तिलक, टोपियों के-
बल पर कुछ बनने का दवा

खाली सिर हो गए बोझ से
सोचो फिर भराव की।

जाति आदमी, धर्म आदमी
क्या ये दर्शन नाकाफी है
क्या नहीं दूसरी आज़ादी-
के लिए बात बुनियादी है

बिखर गए हिमखंडों! सोचो
मिलकर फिर बहाव की।

१५ मार्च २०१० 

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