अनुभूति में श्याम
नारायण मिश्र की
रचनाएँ -
गीतों में-
गीत कालातीत पर्वत के
प्रणयगंधी याद में
बाँस का जंगल जला
शांति के शतदल
समय के देवता
|
|
शांति के शतदल
शान्ति के
शतदल-कमल तोड़े गए
सभ्यता की इस पुरानी झील से
लोग जो ख़ुशबू गए थे खोजने
लौटकर आए नहीं
तहसील से
1
चलो उल्टे पाँव भागें
यह नगर रंगीन अजगर है
होम होने के लिए आए जहाँ हम
यज्ञ की वेदी नहीं
बारूद का घर है
1
रोशनी के जश्न की
ज़िद में हुए वंचित
द्वार पर लटकी हुई कंदील से।
1
हवा-आँधी बहुत देखी
धूल है बस धूल है, बादल नहीं।
प्यास औंधे मुँह पड़ी है घाट पर
इस कुएँ में
बूँद भर भी जल नहीं।
1
दूध की
अंतिम नदी का पता जिसको था,
मर गया वह हंस लड़कर चील से।
६ मई २०१३
|