अनुभूति में श्याम
नारायण मिश्र की
रचनाएँ -
गीतों में-
गीत कालातीत पर्वत के
प्रणयगंधी याद में
बाँस का जंगल जला
शांति के शतदल
समय के देवता
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बाँस का जंगल जला
बाँस का जंगल जला,
फिर बाँसुरी ने
गीत गाए
तुम कहाँ हो गीत की
यह जन्मगाथा
मन सुनाए।
तीर्थ से लौटी नहीं है
श्वास पश्चाताप की,
दूर तक फैली हुई
पगडंडियाँ है पाप की,
पोर गिन-गिन
उँगलियाँ
डाकिन चबाए।
अस्थियाँ इतिहास की
कलश देहरी पर धरा है।
और आँगन में अधूरे
क़त्ल का शोणित भरा है।
कौन आँखों के दिए में
आग भर के
प्रेत को फिर से जगाए।
६ मई २०१३
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