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अनुभूति में श्याम अंकुर की रचनाएँ -

गीतों में-
कौन दे गया
खेत जिगर का
चलती देखी
झेल रहा हूँ
रिश्तों के बीच
लोग यहाँ के
विश्वासों की चिड़िया
 

 

 

विश्वासों की चिड़िया

राई जितना पुण्य है,
पर्वत जितना पाप 

विश्वासों की चिड़िया डरती
घुट-घुट हर पल आहें भरती
कोई है ना सुनने वाला
एक अकेली जीती मरती
अपनेपन को -
लग गया,
आज किसी का शाप

नागफनी घोटालों की है
चलती कपटी चालों की है
झेल रहे नित पीड़ा गहरी
हालत यह रखवालों की है
मन से सुख -
अब है उड़ा,
बनकर सारा भाप

मन खेतों में नफरत उगती
प्यासी-प्यारी हसरत उगती
काँटों के मन अब भी गहरी
केवल रोज शरारत उगती
राम-नाम का -
कर रहे,
कपटी बगुले जाप

१ सितंबर २००८

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