रिश्तों के बीच
रिश्तों के -
अब बीच में,
स्वारथ की तलवार।
इक-दूजे को
देते धोका
अपनों ने ही रस्ता रोका
गुमसुम बैठा -
रो रहा,
राम-भरत का प्यार।
छाई
भौतिकता की काई
काली करता मनुज कमाई
मन की -
यूँ आवाज को,
मनुज रहा है मार।
गुलशन लूटा
रखवालों ने
शकुनी की कपटी चालों ने
दुर्योधन की -
जीत अब,
अर्जुन की क्यूँ हार?
१ सितंबर २००८
|